Friday, 12 December 2014

Ron Watts को भारत रत्न !

उम्मीद है कि रॉन वॉट्स दम्पति को भारत रत्न मिलकर रहेगा… ... Ron Watts, Conversion Adventist Church
हम अशिक्षित और संस्कृतिविहीन किस्म के भारतवासियों विशेषकर हिन्दुओं को श्री रॉन वॉट्स तथा श्रीमती डोरोथी वॉट्स का तहेदिल से शुक्रगुज़ार होना चाहिये कि उन्होंने भारत में आकर ईसाई धर्म का प्रचार करने की ज़हमत उठाई और अपने काम को बड़ी लगन और मेहनत से सफ़लता की ऊँचाई पर ले जा रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि उन्हें भारत रत्न मिले और आप उल्लू की तरह पूछते फ़िरें कि ये कौन हैं? और इन्हें भारत रत्न क्यों दिया गया?, इसलिये मेरा फ़र्ज़ बनता है कि आपको इनके बारे में बताऊं…

कनाडा निवासी वॉट्स दम्पति “सेवेन्थ-डे एडवेंटिस्ट चर्च” के दक्षिण एशिया प्रभारी हैं। 1997 में जिस समय इन्होंने इस चर्च के दक्षिण एशिया का प्रभार संभाला, उस समय 103 वर्षों के कार्यकाल में भारत में इसके सदस्यों की संख्या दो लाख पच्चीस हजार ही थी। लेकिन सिर्फ़ 5 साल में अर्थात 2002 तक ही वॉट्स दम्पति ने भारत में इसके सदस्यों की संख्या 7 लाख तक पहुँचा दी (है ना कमाल का काम!!!)। इन्होंने गरीब भारतीयों के लिये इतना जबरदस्त काम किया, कि सिर्फ़ एक दिन में ही ओंगोल (आंध्रप्रदेश) में 15018 लोगों ने धर्म परिवर्तन करके ईसाई धर्म अपना लिया।

http://www.adventistreview.org/2001-1506/news.html

और

http://www.adventistreview.org/2004-1533/news.html

वॉट्स दम्पति का लक्ष्य 10,000 चर्चों के निर्माण का है, और जल्द ही वे इस जादुई आँकड़े को छूने वाले हैं तथा उस समय एक भव्य विजय दिवस मनाया जायेगा। असल में इस महान काम में देरी सिर्फ़ इसलिये हुई, क्योंकि इनके सबसे बड़े मददगार और “हमारी महारानी” के खासुलखास व्यक्ति, अर्थात “भारत रत्न” एक और दावेदार सेमुअल रेड्डी की हवाई दुर्घटना में मौत हो गई। फ़िर भी वॉट्स दम्पति को पाँच राज्यों के ईसाई मुख्यमंत्रियों का पूरा समर्थन हासिल है और वे अपना परोपकार कार्य निरन्तर जारी रखे हैं। इनकी मदद के लिये अमेरिका स्थित मारान्था वॉलंटियर्स भी हैं जिन्होंने भारत में दो साल में 750 चर्च बनाने तथा ओरेगॉन स्थित फ़ार्ली परिवार, जिन्होंने एक चर्च प्रतिदिन के हिसाब से 1000 चर्च बनाने का संकल्प लिया है। इनका यह महान कार्य(?) जल्द ही पूरा होगा, साथ ही भारत में इनकी स्थानीय मदद के लिये इनके कब्जे वाला 80% बिकाऊ मीडिया और हजारों असली-नकली NGOs भी हैं।

श्री एवं श्रीमती वॉट्स की मेहनत और “राष्ट्रीय कार्य” का फ़ल उन्हें दिखाई भी देने लगा है, क्योंकि उत्तर-पूर्व के राज्यों मिजोरम, नागालैण्ड और मणिपुर में पिछले 25 वर्षों में ईसाई जनसंख्या में 200% का अभूतपूर्व उछाल आया है। त्रिपुरा जैसे प्रदेश में जहाँ आज़ादी के समय एक भी ईसाई नहीं था, 60 साल में एक लाख बीस हजार हो गये हैं, (हालांकि त्रिपुरा में कई सालों से वामपंथी शासन है, लेकिन इससे चर्च की गतिविधि पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता, क्योंकि वामपंथियों के अनुसार सिर्फ़ “हिन्दू धर्म” ही दुश्मनी रखने योग्य है, बाकी के धर्म तो उनके परम दोस्त हैं) इसी प्रकार अरुणाचल प्रदेश में सन् 1961 की जनगणना में सिर्फ़ 1710 ईसाई थे जो अब बढ़कर एक लाख के आसपास हो गये हैं तथा चर्चों की संख्या भी 780 हो गई है।

एक दृष्टि रॉन (रोनॉल्ड) वॉट्स साहब के सम्पर्कों पर भी डाल लें, ताकि आपको विश्वास हो जाये कि आपका “भविष्य” एकदम सही हाथों में है…

1) रॉन वाट्स के खिलाफ़ बिजनेस वीज़ा पर अवैध रूप से भारत में दिन गुजारने और कलेक्टर द्वारा देश निकाला दिये जाने के बावजूद जबरन भारत में टिके रहने के आरोप हैं, लेकिन उन्हें भारत से कौन निकाल सकता है, जब “महारानी” जी से उनके घरेलू सम्बन्ध हों… क्या कहा… विश्वास नहीं होता? खुद ही पढ़ लीजिये…

http://www.scribd.com/doc/983197/RON-WATTS-AND-SONIA-GANDHI-OPERATE-TOGETHER

2) रॉन वॉट्स साहब को ऐरा-गैरा न समझ लीजियेगा, इनकी पहुँच सीधे चिदम्बरम साहब के घर तक भी है… चिदम्बरम साहब की श्रीमती नलिनी चिदम्बरम, रॉन वॉट्स की वकील हैं, अब ऐसे में चिदम्बरम साहब की क्या हिम्मत है कि वे वॉट्स को देशनिकाला दें। ज्यादा क्या बताऊँ… आप खुद ही इनके रिश्तों के बारे में पढ़ लीजिये…

http://www.hvk.org/articles/0605/12.html

3) इन साहब की कार्यपद्धति के बारे में विस्तार से जानने के लिये यहाँ देखें…

http://www.organiser.org/dynamic/modules.php?name=Content&pa=showpage&pid=184&page=5

तात्पर्य यह कि समस्त भारतवासियों को वॉट्स दम्पति का शुक्रगुज़ार होना चाहिये कि उन्होंने हजारों लोगों को “सभ्य” बनाया, वरना वे खामख्वाह हिन्दुत्व जैसे बर्बर और असभ्य धर्म में फ़ँसे रहते। इसलिये मैं “महारानी” से अनुशंसा करता हूं कि वॉट्स दम्पति द्वारा भारत के प्रति इस “अतुलनीय योगदान” के लिये इन्हें शीघ्रातिशीघ्र “भारत रत्न” प्रदान करे।

आप क्या सोचते हैं, क्या इन्हें भारत रत्न मिल पायेगा? मुझे तो पूरा विश्वास है कि कांग्रेसियों की “इटली वाली महारानी” इस पर अवश्य विचार करेंगी, आखिर पहले भी ग्राहम स्टेंस की विधवा को हमने उनके “भारत के प्रति अतुलनीय योगदान” के लिये पद्म पुरस्कार दिया ही था।

वैसे तो “अतिथि देवो भवः” की परम्परा भारतवर्ष में कायम रहे इसलिये अफ़ज़ल गुरु, कसाब, क्वात्रोची, वॉरेन एण्डरसन, रॉन वॉट्स जैसे लोगों की “सेवा” में कांग्रेस सतत समर्पित कार्य करती ही है, फ़िर भी मैं तमाम सेकुलरों, कांग्रेसियों, वामपंथियों और बचे-खुचे बिकाऊ बुद्धिजीवियों से भी आग्रह करता हूं कि वे भी अपनी तरफ़ से इस कर्मठ कार्यकर्ता को भारत रत्न दिलवाने हेतु पूरा ज़ोर लगायें, कहीं ऐसा न हो कि हमारी मेहमाननवाज़ी में कोई कमी रह जाये…।

Thursday, 11 December 2014

संघ में दान न लेने की प्रथा | How to donate to RSS?

अक्सर सवाल पूछे जाते हैं की संघ को यदि दान देना हो तो वेबसाइट का लिन्क नहीं मिलता, 

जिज्ञासु तथा देशप्रेमी भाई बहनो को विनम्रतापूर्वक इस बात का ज्ञान देना चाहता हूँ, की संघ केवल स्वयंसेवको से चलने वाला संगठन है, पैसो से चलने वाला नहीं। 
संघ आपसे आपका धन नहीं, अपितु समय और भाव मांगता है। 
मैं 6 महीने पूर्व संघ का स्वयंसेवक बना, तभी से लेकर अब तक संघ के हर कार्यकर्म में भाग लिया, मुझे गुरु दक्षिणा कार्यकर्म में सम्मलित होने का अवसर सितम्बर मास में मिला, गुरु दक्षिणा कार्यकर्म वार्षिक कार्यकर्म होता है जहा सभी आयु के स्वयंसेवक स्वः इच्छा से परम पूजनीय भगवा ध्वज को प्रणाम करके, वह रखे कलश में गुप्त रूप से दक्षिणा रखते हैं, इससे किसी को नहीं पता होता की किसने कितना धन दिया, कुछ स्वयंसेवक अपनी आय का कुछ प्रतिशत देते हैं कुछ खुल के दक्षिणा करते हैं, अपनी श्रद्धा अनुसार, वहाँ जो वक्ता थे, उन्होंने हमसे संघ इतिहास में हुए गुरु दक्षिणा कार्यक्रमों की कई ऐसी घटनाओ का उल्लेख किया, 
जिन्हे सुन के मन भाव विभोर हुआ, कभी और उन कहानिओं का उल्लेख अवश्य होगा। 

आप सोचते होंगे संघ के लाखो स्वयंसेवक , साल में केवल एक बार दक्षिणा देते हैं, और उन पैसो से पूरा साल संघ अपना कार्य करता है, संघ को पैसों की जरुरत नहीं हैं, क्यूकि संघ की जरूरतें कम हैं, वे हर स्वयंसेवक से और सम्पूर्ण समाज से भी ऐसा ही भाव मन में रखने की शुभेच्छा रखता है , जो भी पैसा स्वयंसेवको से आता है वे 2500 प्रचारकों के तेल कंघी साबुन कपड़ो और बिछौने में ही लग जाता है। 
आप ही बताइए संघ को इससे ज़्यादा किस वस्तु की अपेक्षा होगी?   

बंधुओ,
यदि आप सच्चे मन से संघ को कुछ दान देना चाहते हैं, तो संघ से जुड़िये , इसके लिए आपको शाखा में रोज़ आने की आवश्यकता भी नहीं होगी, अपने मन से Social Media Sites के माध्यम से सुप्रचार के कार्य जो कर रहें हैं उन्हें भी करते रहिये, और  अपने आस पास के बंधूओ , मित्रो, एवं परिजनों, जन जागृति का कार्यकर्म भी जारी रखिये, IT क्षेत्र से जुड़े भाई बंधूओ की IT MILAN SHAKHA भी साप्ताहिक लगती है, अपने घर से निकलिए, शाखा में जाइए, जो भी अधिकारी हो उनसे बात कीजिये, और भारत माता को विश्व गुरु बनाने के इस अतिविशाल कार्य में अपना भी सहयोग दीजिये।    

जहा तक धन देकर संतुष्टि पाने का प्रश्न है तो RSS नहीं, परन्तु शिक्षा समिति और सेवा समिति में दान अवश्य कर सकते हैं, यह पैसा संघ या प्रचारको से अनभिज्ञ व अज्ञात रहती है, 
आप चाहे तो संघ परिवार की इन कार्यरत समितियों ( Sewa Bharati & Ekal School Foundation , Vanvasi Kalyan Parishad aur Bharatiya Janata Party ) में धन दान दे सकतें हैं , यदि समय नहीं दे सकते तो निश्चिन्त होके दान दे, यह संगठन जो पैसा लेते हैं वे सीधा सीधा, अनुसूचित जाती, वन जाती, आदिवासियों के उत्थान  में जाती है। धर्मांतरण रोकने , मिशनरियों के कर्मकाण्ड को निष्फल करने में आपका धन सहायक होगा।  


भारत माता की जय 

संघ से जुड़ने के लिए ONLINE : http://rss.org/pages/joinrss.aspx



डोनेट करने के लिए संगठनों के लिंक  

Wednesday, 10 December 2014

छत्रपती शिवाजी महाराज की विश्वसनिय छवि - Vietnam War

वियतनाम एक छोटा सा देश जिसने अमेरिका जैसे बड़े व बलशाली देश को झुका दिया। लगभग बीस वर्षों तक चले युद्ध में अमेरिका पराजित हुआ।

अमेरिका पर विजय के बाद वियतनाम के राष्ट्रियाध्यक्ष से पत्रकार ने एक सवाल पूछा।
जाहिर सी बात है कि सवाल यही होगा आप युद्ध कैसे जीते या अमेरिका को कैसे झुका दिया।

पर उस प्रश्न का दिया उत्तर सुनकर आप हैरान रह जायेंगे व आपका सीना भी गर्व से भर जायेगा। दिया गया उत्तर पढ़िये।

सभी देशों में सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका को हराने के लिए मैंने एक महान राजा का चरित्र पढ़ा। और उस जीवनी से मिली प्रेरणा व युद्धनिती का प्रयोग कर सरलता से विजय प्राप्त की। आगे पत्रकार ने पूछा कौन थे वो महान राजा?

मित्रों जब मैंने पढ़ा तब जैसे मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया आपका का भी सीना गर्व से भर जायेगा।

वियतनाम के राष्ट्रियाध्यक्ष ने खड़े होकर जवाब दिया "छत्रपति शिवाजी महाराज"

महाराजा छत्रपति शिवाजी का नाम लेते समय उनकी आँखों में एक वीरता भरी चमक थी। आगे उन्होंने कहा अगर ऐसे राजा ने हमारे देश में जन्म लिया होता तो हमने सारे विश्व पर राज किया होता।

कुछ वर्षों के बाद राष्ट्रियाध्यक्ष की मृत्यू हुई उसने अपनी समाधी पर लिखवाया "शिवाजी महाराज के एक शिष्य की समाधी"।

कालांतर में वियतनाम के विदेशमंत्री भारत के दौरे पर थे। पूर्वनियोजित कार्यक्रमानुसार उन्हें पहले लालकिला व बाद में गांधीजी की समाधी दिखलाई गई। ये सब दिखलाते हुए उन्होंने महाराजा शिवाजी की समाधी कहाँ है पूछा?

तब भारत सरकार चकित रह गयी व रायगढ़ का उल्लेख किया। विदेशमंत्री रायगढ़ आये व राजा शिवाजी की समाधी के दर्शन किये।
समाधी के दर्शन लेने के बाद समाधी के पास की मिट्टी उठाई व अपने बैग में भर ली इस पर पत्रकार ने मिट्टी रखने का कारण पूछा।

मंत्री महोदय ने कहा ये मिट्टी शूरवीरों की है।
इस मिट्टी में एक महान् राजा ने जन्म लिया ये मिट्टी मै अपने देश की मिट्टी में मिला दूंगा ताकि मेरे देश में भी ऐसे ही वीर पैदा हो।

मेरा यह राजा केवल भारत  का गर्व न होकर सम्पूर्ण जग का गर्व होना चाहिए।

अपेक्षा व्यक्त करता हूँ की यह पोस्ट आप बड़े अभिमान के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर करेंगे।

जय छत्रपती शिवाजी महाराज की जय!

Tuesday, 9 December 2014

गगन में लहरता है भगवा हमारा - अटल बिहारी वाजपेयी | Gagan Me Leharta Hai Bhagwa - Atal Bihari Vajpayee

प्रखर स्वयंसेवक और प्रचारक रहे मा श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की महान संरचनाओं में से एक कविता जो दिल को छूती है 

  " गगन में लहरता है भगवा हमारा " 

यह कविता निश्चित ही कोई वीर रस के धुरंधर एवं सच्चे राष्ट्रवाद के पुजारी ही लिख सकते हैं
कविता में कवि ने सत्य का वर्णन बड़े ही पीड़ादायक शब्दों में किया है, जिसे पढ़ सुनकर किसी भी देशभक्त के रोंगटे खड़े हो जाएं
कविता में हिन्दुओं द्वारा सहे गए अपमान, लुटे स्वाभिमान एवं सब कुछ खो देने के बावजूद भी पूज्य भगवा ध्वज, साधुओं के चोलों पर नहीं तो हर भारतवंशी के दिल में बसा रहा.

भगवा ध्वज, राष्ट्र आराधना का प्रतीक, परम पूजनीय है, सदिओं से चलते आये आक्रमणों के बीच भी, पूज्य भगवा ध्वज सभी देशप्रेमियों, चाहे वे किसी भी पंथ या संप्रदाय को मानने वाले हों, सिख हो या सनातनी हो, आर्य समाजी हो या बिश्नोई हो, जैन हो या बोद्ध हों, प्राणों के भांति, ऊर्जा प्रदान करता रहा.

आए सभी मिलकर कविता को लिखित रूप में और चाहे तो निःशुल्क DOWNLOAD का भी आनंद उठायें  

भारत माता की जय


॥ गगन में लहरता है भगवा हमारा ॥
गगन मे लहरता है भगवा हमारा ।
घिरे घोर घन दासताँ के भयंकर
गवाँ बैठे सर्वस्व आपस में लडकर
बुझे दीप घर-घर हुआ शून्य अंबर
निराशा निशा ने जो डेरा जमाया
ये जयचंद के द्रोह का दुष्ट फल है
जो अब तक अंधेरा सबेरा न आया
मगर घोर तम मे पराजय के गम में विजय की विभा ले
अंधेरे गगन में उषा के वसन दुष्मनो के नयन में
चमकता रहा पूज्य भगवा हमारा॥१॥

भगावा है पद्मिनी के जौहर की ज्वाला
मिटाती अमावस लुटाती उजाला
नया एक इतिहास क्या रच न डाला
चिता एक जलने हजारों खडी थी
पुरुष तो मिटे नारियाँ सब हवन की
समिध बन ननल के पगों पर चढी थी
मगर जौहरों में घिरे कोहरो में
धुएँ के घनो में कि बलि के क्षणों में
धधकता रहा पूज्य भगवा हमारा ॥२॥

मिटे देवाता मिट गए शुभ्र मंदिर
लुटी देवियाँ लुट गए सब नगर घर
स्वयं फूट की अग्नि में घर जला कर
पुरस्कार हाथों में लोंहे की कडियाँ
कपूतों की माता खडी आज भी है
भरें अपनी आंखो में आंसू की लडियाँ
मगर दासताँ के भयानक भँवर में पराजय समर में
अखीरी क्षणों तक शुभाशा बंधाता कि इच्छा जगाता
कि सब कुछ लुटाकर ही सब कुछ दिलाने
बुलाता रहा प्राण भगवा हमारा॥३॥

कभी थे अकेले हुए आज इतने
नही तब डरे तो भला अब डरेंगे
विरोधों के सागर में चट्टान है हम
जो टकराएंगे मौत अपनी मरेंगे
लिया हाथ में ध्वज कभी न झुकेगा
कदम बढ रहा है कभी न रुकेगा
न सूरज के सम्मुख अंधेरा टिकेगा
निडर है सभी हम अमर है सभी हम
के सर पर हमारे वरदहस्त करता

गगन में लहरता है भगवा हमारा॥४॥ 

हिंदी में BLOG लिखने का कारण

अंग्रेजी का प्रयोग करते करते, हम सब युवाओ का व्यवहार भी अंग्रेज़ी होता जा रहा है , हमारी पिछली पीढ़ी तथा उनसे भी पूर्व की पीढियो पर अंग्रेज़ी का गहरा प्रभाव हुआ है. 
अंग्रेजो के गुलाम रहते रहते, शारीरिक और मानसिक उत्पीडन सहते सहते, हम इस आधुनिक युग में अपनी विरासत भूलते गए, संस्कृत सीखनी तो अति दुर्गम प्रतीत होती है, हिंदी भी भूलते जा रहे हैं.

हम सब भारतवासियो की पहचान हिंदी है , अरब देश में, आज भी किसी भी पंथ को मानने वाले क्यों न हो भारतीयों को हिंदी या हिन्दू ही कहा जाता है. 
अब तो हमारे देश के स्वाभिमानी प्रधानमंत्री मा श्री नरेन्द्र मोदी जी तथा अन्य कई नेतागण भी हिंदी का परचम विश्व भर में लहरा के आयें हैं. 
खेर, वे तो सरकारी लोग हैं , परन्तु प्रजा का भी उतना ही दायित्व बनता है की हम अपनी संस्कृति, अपनी विरासत को अपने अन्दर जीवित रखें, अपने बच्चों और दुसरे लोगो को भी हिंदी का महत्व तथा गौरवशाली जननी मात्रभाषा संस्कृत सीखने की प्रेरणा दें. 

अंततः स्वयं को पहचान कर, खुले दिल और खुले मन के साथ मैं इक्कीसवीं सदी का युवा आपसे हिंदी बोलने, पढ़ने तथा हिंदी को व्यवहार में लाने की प्रार्थना करके, अपने इस BLOG का श्री गणेश करने जा रहा हूँ

भारत माता की जय