ओ३म्। स्वस्ति नऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस् तार्क्ष्योऽ अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर् दधातु॥२७॥ –यजुर्वेद २५.१९
सरल अर्थ - मनुष्य को चाहिए जैसे स्वयं के लिए सुख चाहे, वैसे ही दूसरों के लिए भी चाहें, जैसे अपने लिए दुःख ना चाहें वैसे किसी के लिए भी ना चाहें। ऐसी प्रार्थना सदैव परम् ऐश्वर्यवान ईश्वर से करनी चाहिए।।
अद्वेतवाद सिद्धांत वेद में दिया है
जिसका अर्थ है कि परमपिता परमेश्वर ओम के सम्मुख कोई दूसरा नही है यानी वो केवल एक परमात्मा है
इसमे यजुर्वेद का प्रमाण
ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परिता बभूव । यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्
दूसरे शब्द का पाणिनि व्याकरण अनुसार विच्छेद करें तो 4 शब्द बनते हैं
ना त अद्वेता अनन्यो
का अर्थ है नही है तुम जैसा दूसरा और अन्य कोई, अर्थात तुम एक हो, अद्वितीय हो, यहीं से अद्वैत का वैदिक सिद्धांत बना था पर...
अब पौराणिक कथावाचकों और नवीन छलिय वेदांतवादी अर्थ सुनो
अद्वेत का अर्थ है कि दूसरा कुछ नही है एक उस परमात्मा के सिवा यानी
उसके सिवा कोई और पदार्थ ही नही है
ना जीवात्मा, ना प्रकृति, ना काल, ना ब्रह्माण्ड, ना व्यवस्थाएं यानि
ये सब कुछ ईश्वर ही है
मैं भी, तुम भी, तुम्हारे हाथ मे पकड़ा फोन भी, टीवी भी, नाली का पानी भी और इन लोगो की मूढ़ बुद्धि भी, ये सब कुछ ईश्वर ही है
पदार्थ कुछ नही, जीवात्मा कुछ नही
ब्रह्म सत, जगत मिथ्या
अहम ब्रह्मास्मि का अर्थ भी इन्होंने यही किया है कि मैं ब्रह्म हूँ
मैं शिव हूँ
चिदानन्द रूपः शिवोहम शिवोहम
ऐसी ऐसी कपोलकल्पना मनगढ़ंत बातें कर रखी हैं वेदांतवादी पौराणिक लोगों ने
अब इस पौराणिक पोप पर वैदिक तोप देखो
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यदि जब कुछ है ही नही, सब कुछ ईश्वर ही है, तो फिर ईश्वर उत्तपत्ति पालन और प्रलय भी स्वयं का ही कर रहे हैं??
इससे तो फिर बड़ा ड्रामेबाज़ ईश्वर सिद्ध हुआ कि अपनी फिल्म बना के आप ही देखे जाए
हम भी ऐसे की उपासना क्यों करें जबकि हम तो हम हैं ही नही
हम तो स्वयं ही ईश्वर हैं
तो बे तुम हमारी करो हम तुम्हारी करें? बड़ा कंफ्यूज़न हो
और ईश्वर हमे राजा की तरह पालन करता है और हमे प्रजा की तरह व्यवहार करना चाहिए राजा की बात मान कर, अब इनका अर्थ माने तो फिर सब कुछ ब्रह्म ही है सभी कुछ परमात्मा है तो
कोई किसी की बात क्यों माने?
पाकिस्तानी आतंकवादी भी ब्रह्म है
उसको सजा देने वाली भारतीय सेना का जवान भी ब्रह्म है
जो गोलियां चल रही हैं वो गोली भी परमात्मा है
परमात्मा परमात्मा से ही परमात्मा के धारण किये शरीर को मार रहा है?
क्या फ़िल्म चल रही है ये?
वास्तविकता तो यह है कि अद्वेत का अर्थ ही अनर्थ किया हुआ है
जब हम स्वयं ब्रह्म ही हैं तो हमारे और उनके गुण अलग कैसे हैं?
और प्रकृति भी ब्रह्म है हम भी ब्रह्म है तो हमारे और प्रकृति के गुण अलग कैसे?
गुण भी अलग
कर्म भी अलग
स्वभाव भी अलग
तुम पानी बन जाओ या अग्नि बन जाओ एक ही बात है क्या?
क्या दोनों के गुण कर्म स्वभाव अलग नही?
और यदि जगत मिथ्या है, तो भाई मिथ्या कार्य करता है क्या ईश्वर? बड़ा नौटंकी हुआ फिर तो क्यों ही उपासना के योग्य है?
क्या ईश्वर झूठा है? मिथ्या कर्म, मिथ्या भाषण करता है? या सत्यवादी और सत्य आचरण करता है?
जब पपीता कटेगा तो छोटा पपीते का टुकड़ा बनेगा, टुकड़े का और मूल पपीते का गुण एक है व पृथक पृथक
यानी दोनों बराबर मीठे, कणों का घनत्व(Density) बराबर, पुष्टाहार बराबर
तो तुम कहोगे कि गुण तो एक है
तो फिर यदि हम ब्रह्म का ही हिस्सा यानी स्वयम्भू हैं तो हम भी सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्व्यापक, नित्यपवित्र सृष्टिकर्ता न्यायकारी, धर्म मार्ग में चलाने, कर्मानुसार जन्म प्रदान करने वाले होने चाहिएं
क्या एक भी ऐसा गुण जीवात्मा में है? चलो छोड़ो प्रकृति में है?
क्या प्रकृति न्याय अन्याय धर्म अधर्म सर्वज्ञ तो क्या अल्पज्ञ भी नही हो सकती वह तो जड़ है, चेतन भी नही हो सकती
और यदि करोड़ो आत्माएं और करोड़ो प्राकृतिक जगत ईश्वर के टुकड़े हैं तो अलग अलग होने से ईश्वर तो कइ टुकड़ो में बट गया होगा अबतक?
ऐसा कुछ भी नही है
अद्वेत का अर्थ है
तुमसे भिन्न ना कोई जग में
सबमे तू ही समाया है
जड़ चेतन सब तेरी रचना
तुझमे आश्रय पाया है
हे सर्वोपरि विभु विश्व का तूने साज सजाया है
हेतु रहित अनुराग दीजिये यही भक्त को भाया है
यानी हम सब उसमें है
वो हम सबमे है
सूक्ष्मरूपी तत्व की तरह
लेकिन हम वो नही है
और वो हम नही है
इसलिए मूर्तिपूजको से मेरा एक प्रश्न हमेशा रहता है
कि मूर्ति में ईश्वर मानते हो?
या मूर्ति ही को ईश्वर मानते हो?
😀
तो हड़बड़ा जाते हैं और कहते हैं
धर्म कर्म में तर्क नही करते
जो चला आ रहा है मान लो
तो चला तो अंग्रेजी शासन भी था
बौद्ध धम्म चक्क भी था
इस्लामी काल भी आया था
उसे क्यों विरोधवश तोड़ा?इतना समय तब भी इसलिए लग गया क्योंकि सोच पर सोचने के लिए ताले लगे थे
आज यही ताले इन तथाकथित वेदांतवादी और पोंगा पाखंडियों ने लगाए हमारी बुद्धि पर
कि
होउ वही जो है राम रची राखा
क्यों करे तर्क बढ़ावे साखा
तो ऐसी ऐसी व्याख्या करना जड़बुद्धि लोगो का कार्य है
इन्हें स्वयं को वेदांतवादी कहना छोड़ देना चाहिये
असत्यभाषण आदि दोषों से बाहर आना चाहिए
ओम शम
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विचारक