आंख खोल कर देखो घर में भीषण आग लगी है,
धर्म, सभ्यता, संस्कृति खाने दानव क्षुधा जगी है।
हिन्दू कहने में शर्माते, दूध लजाते, लाज न आती?
घोर पतन है, अपनी माँ को माँ कहने में फटती छाती।
- अटल बिहारी वाजपेयी
अटल जी द्वारा लिखी यह पंक्तियाँ वाकई हमे सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपना गोत्र, उपनाम, जाति बहुत गर्व से अपने नाम के साथ लगाते हैं।
दूसरों को बतातें फिरते हैं कि हम तो ब्राह्मण हैं, हम तो गुज्जर हैं, हम तो जाट हैं, राजपूत हैं, बनिये हैं, पंजाबी हैं, मराठी हैं, सिंधी हैं, गुजराती हैं इत्यादि
यदि कोई अपना उपनाम व जाति निजी कारणों से न बताना चाहे तो उससे 'फिर भी?', 'आप क्या हो वैसे?' कह कर 'उसकी जाति' ही पूछ लेते हैं फिर पता नही कैसा चरम सन्तोष प्राप्त होता हो यह जानकर की यह अपनी जाति का है या नही, यह तो मैं नही समझ पाया।
क्या पता कुछ लोग भेदभावपूर्ण या राजनीतिपूर्ण दृष्टि से सन्तोष पा लेते हो और अपने मन में उसकी जाति के अनुसार उसकी इमेज अपने दिमाग मे बना लेते हो जैसा उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना हो उनके बारे में।
जैसे बनिये कंजूस होते हैं, सिंधी गुजराती पैसे के पीर होते हैं, पंजाबी है तो दारू तो पीता ही होगा, जाट है तो सोलह दूनी आठ होगा, गुर्जर है तो लड़ाका होगा इत्यादि चर्चित बातों को एक दूसरे पर बिना अपनी बुद्धि का प्रयोग करे थोपते आएं हैं।
न जाने ये हिन्दू जाति यानी हिन्दू संस्कृति को धारण करने वाले लोग कब अन्य जाति वालों को अपना मानना शुरू करेंगे।
चलिए एक भेद खोलते हैं आपके आगे, आपमे से अधिकतर लोगों ने सिंधी शब्द तो सुना होगा या पंजाबी शब्द सुना ही होगा
ये सिंधी और पंजाबी क्या है? ये 2 भाषाएं हैं जो सिंध और पंजाब प्रान्तों में बोली जाती हैं। जी हाँ। यह कोई जातियाँ नही है!
सिंध प्रांत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति सिंधी कहलाता है
और पंजाब प्रांत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति पंजाबी कहलाता है
क्या आप जानते हैं कि सिंधी राजपूत, पंजाबी राजपूत भी होते हैं, सिंधी बनिये पंजाबी बनिये भी होते हैं, सिंधी ब्राह्मण और पंजाबी ब्राह्मण भी होते हैं, सिंधी जाट व पंजाबी जाट भी होते हैं, सिंधी गुर्जर पंजाबी गुर्जर, सिंधी चमार पंजाबी चमार, सिंधी खटीक पंजाबी खटीक, सिंधी सैनी व पंजाबी सैनी, इत्यादि
और क्यो न हों? पंजाब और सिंध केवल प्रान्तों के नाम हैं, उसमे सब जातियाँ रहती हैं और मातृभाषा पंजाबी और सिंधी बोलती हैं, तो वहां के रहने वाले सभी पंजाबी व सिंधी कहलायेंगे या नही?
पर विरला ही कोई इस बात को आज समझ पाता है कि यह पंजाबी राजपूत है और यह पंजाबी खत्री है और यह पंजाबी जट है या ये सिंधी ब्राह्मण है या ये सिंधी बनिया है।
ऐसा इसलिए क्योंकि यह दो प्रान्तों से इन सिंधी व पंजाबी हिन्दूओ की लभगभ सभी जातियों ने अपना अपना इतिहास भुला कर, अपनी अपनी जातियाँ भुला कर, केवल भाषा को जीवित रखा।
जब गीदड़ की मौत आती है तो शहर की ओर भागता है यह दोनों प्रान्त की सभी जातियाँ भी शेरों के समान 1000 सालों तक मुसलमानों के हमलों से लड़ती रही और जबतक पूरी तरह दमन हो गई तब गीदड़ के समान शहर की तरफ भागी, आज पंजाबी और सिंधी भाषा बोलते लोग आपको पूरे देश के लगभग सभी बड़े शहरों में व विदेश में भी मिल जाएंगे।
और इनको अब कोई पंजाबी ब्राह्मण पंजाबी खत्री पंजाबी राजपूत या सिंधी बनिया या सिंधी राजपूत या सिंधी जाट कह के नही पुकारता, केवल सिंधी या पंजाबी ही कहा जाता है।
इतनी विभाजित हुई जातियाँ भी अपने को एक तन्त्र के भीतर विकसित करने में सक्षम रही और देश के सबसे बड़े अधिकतर उद्योगपति सिंधी या पंजाबी ही हैं।
परन्तु भारतीय प्रजातन्त्र व संविधान ने इन दोनों भाषाओं के बोलने वालों को जाति का नाम दे दिया और कमाल है हिन्दुओं तुम्हे 2 नई जातियाँ मिल गयी।
अब आलम यह है कि ये दो जातियों को पाकिस्तानी कह के सम्भोधित किया जाता है और बाकी जातियाँ अब भी वही धुरी पर घूम रही हैं, ब्राह्मण, बनिया, नार्थ इंडियन साउथ इंडियन, बिहारी मराठी, बंगाली असामी आदि विवादों में फंसी हुई हैं।
जब ये 2 भाषाओं के बोलने वाले दमन करने के बाद अपने को पंजाबी और सिंधी काल्पनिक जाति वाला कह के एक सूत्र में पिरो गए तो क्यों नही समस्त जातियाँ अपने भेदभाव भूला कर, अपने अपने समाजी मंचो को छोड़, समग्र हिन्दू समाज कह कर स्वयं को एक धागे में पिरोने की पहल करें।
लगता है समग्र दमन(मार-काट) सहना अभी बाकी है, औरंगजेब व खिलजी का राज दुबारा आना बाकी है,
क्योंकि उनके लिए कोई ब्राह्मण जाट गुज्जर यादव पंजाबी मराठी नही है उनके लिए हम सब काफ़िर हैं
काफ़िर यानी जो अल्लाह को नही मानता और जो अल्लाह को न माने वो जीवन जीने योग्य नही है। ऐसा आसमानी किताब कुरआन कहती है।
एक बार और दमन सहने पर शायद ये बचे खुचे कटे फ़टे जातियों में बटे हिन्दू एक हो जाएं।
- विचारक (कटाक्षपूर्ण)