Thursday, 23 March 2017

लुप्त होती कश्मीर की आबरू - शारदा लिपि | Save Kashmir Save Kashmiriyat

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लुप्त होती कश्मीर की आबरू - शारदा लिपि
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संस्कृति द्रोह और भारत द्वेष के कारण आज एक लिपि लुप्त होने की कगार पर है
बात है कश्मीर में जन्मी लेखन पद्दति या लिपि जिसे शारदा लिपि कहते है

जी हाँ कश्मीर और पंजाब क्षेत्र की लिपि शारदा ही थी, शारदा लिपि ही गुरमुखी जो आज पंजाब में विस्तृत रूप से लिखी जाती है, की जननी है।

पुराने पञ्जाबी व् कश्मीरी साहित्यकारों ने शारदा लिपि का खूब प्रयोग किया है

आज आप जम्मू कश्मीर जाएँ तो आपको कश्मीरी भाषा फ़ारसी-अरबी इत्यादि विदेशी लिपियों की तरह ही एक मिलती जुलती लिपि में लिखी दिखाई पड़ेगी।

चलिए मान लेते हैं
इस्लामिक चिंतन के लोग अधिक है कश्मीर में इसलिए हार्दिक रूप से वे अरब में ही रमते बसते हैं
सो अरबी फ़ारसी लिपि ही प्रयोग करेंगे और कश्मीरी भाषा में भी कुछ कुछ इस्लामी भाषाएँ मिलाते होंगे।

परन्तु कश्मीरी हिंदुओं का भी उतना ही बुरा हाल है, प्रजा बेशक मुस्लिम हो, कश्मीर का राजा तो लगभग 1000 सालो से हिन्दू डोगरा राजपूत ही हैं, सत्ता हाथ में होते हुए भी शारदा लिपि को उच्च दर्जा दिलाने के लिए कुछ न किया??
आज किसी कश्मीरी पण्डित से पूछो की कश्मीरी शारदा में क्यों नही लिखते तो निष्क्रिय कबूतर अपने बच्चों का मुँह यह कह के बन्द करवा देते हैं
"It is very tough script". यह तो निष्क्रियता और अकर्मण्यता की पराकाष्ठा है।

लेकिन बांग्लादेश जैसे राष्ट्र ने बांग्ला भाषा को अपना सिरमौर माना, आमार सोनार बांग्ला उनका राष्ट्रगान रवीन्द्रनाथ ठाकुर का लिखा हुआ है, लिपि भी वही है जो भारत के बंगाल में लिखी पढ़ी जाती है। इन्होंने खामखाँ ही उर्दू को थोपा नही जाने दिया न ही अरबी फ़ारसी जैसी दिखने वाली कोई लिपि अपने ऊपर थोपवाई।
देश ही अलग बनवा लिया
नाम रखा बांग्लादेश न की बांग्लामुल्क।

शेख हसीना जी बुरका नही पहनती, साड़ी पहनती हैं व् महिलाये बिंदी और अन्य श्रृंगार को बांग्ला संस्कृति का हिस्सा मानती हैं।

हिन्दू व् भारत से द्वेष के चलते ये कश्मीरी स्वयम् को ही भूल बैठे, अब केवल कश्मीरी हिंदुओं पर ही यह जिम्मा है की क्या वे कश्मीरियत को अपने बच्चों को संस्काररूप दे पाते हैं या नही?
खेर वे अपने अस्तित्व को बचाने में ही फिलहाल सक्षम नही हैं, भाषा, संस्कृति, लिपि को क्या बचा पाएंगे ?

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विचारक

Wednesday, 8 March 2017

इस्लाम का भारत पर पहला आक्रमण | First invasion of Islam in India (644AD) | South Asian Islamic conversion

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इस्लाम का भारत पर पहला आक्रमण
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(क्षमा करे लेख थोड़ा लम्बा लगे तो)
क्या आप जानते हैं भारत भूखंड पर पहला इस्लामिक हमला 644AD में मकरान, बलोचिस्तान में हुआ
उस समय तक वहां सनातन परम्पराओं से पूजन इत्यादि होता था
मकरान में अरोड़ा वंशी खत्री (क्षत्रिय) राय वंश की तीन पीढ़ियों के साथ रशिदुन खलीफा की जंग हुई
मकरान, जो उस समय राजा दाहिर (ब्राह्मण - क्षत्रिय) वंश सिंध प्रांत की जागीरदारी में आती थी
रशिदुन खलीफा जो इस्लाम के पहले खलीफा थे और मुहम्मद के सीधे वंशज थे, मकरान पर जीत हासिल की
और उसके बाद मुहम्मद बिन कासिम ने बौद्धों की मदद से सिंध को ख़लीफ़ा के साम्राज्य तक मिला लिया
दोनों ही खत्री-अरोड़ा क्षत्रिय वंश विवश होकर बिखर गए और अलोर, सुक्कुर, सिंध में अपनी राजधानी छोड़ कर सब दिशाओं में भागे
जिन्हें आज आप अरोड़ा, खन्ना, कपूर, चड्ढा, चंडोक, गुलाटी, भाटिया आदि उपनामों से पहचानते हैं ये वोही राय क्षत्रिय के वंशावली से हैं
दिल्ली, हरियाणा व् बाकि भारत में इन्हें पंजाबी कम्युनिटी कहते हैं
जबकि पंजाब जो स्वयं ही पंजाबी भाषा का क्षेत्र है, इन्हें भापा कह कर संबोधित करता है
लेकिन आज क्या इस जाति के लोगों में क्षत्रियत्व दीखता है ? तनिक भी नहीं, क्षमा चाहूंगा पर ये वोहीं हैं जिन्होंने सबसे अधिक माँसाहार, मद्यपान, पब कल्चर, बॉलीवुड ,पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा दिया , यह क्षत्रिय वर्ण त्याग कर, वैश्य बन गए, आज भी आपको दिल्ली के जनकपुरी से लेकर करोल बाग़ तक की बेल्ट में पंजाबी खत्री व् अरोड़ा सिख व् हिन्दू दोनों भरपूर मिलेंगे
इनका मूलतः वर्ण वैश्य से शुद्र बन चूका है, ऐसा इसलिए की देश धर्म व् संस्कृति की पहचान से ये विमुख हो चुकें हैं
आज इन्हें स्वयं नहीं पता की खत्री किसे कहते हैं, यह अपने आप को WE ARE PUNJABIS कह कर संबोधित करते हैं
इन्हें नहीं पता गोत्र किसे कहते हैं
इन्हें नहीं पता वर्ण किसे कहते हैं
इन्हें नहीं पता वेद किसे कहते हैं
इन्हें नहीं पता कुलदेवी/देवता किसे कहते हैं
इन्हें नहीं पता इनकी जाति क्या है
इन्हें यह पता है
की कितने पेग के बाद नशा होता है
किस्से कितनी पेमेन्ट लेनी बाकी है
मटन या चिकन पकाना हो तो मसाला कौनसा बढ़िया है
कहाँ पर कौनसी फिल्म बढ़िया लगी है
कौनसे डिस्क में कौनसी पार्टी चल रही है
कनाडा अमरीका का वीसा कहाँ और कितने में बनता है
एक बात अच्छी भी लिख दू ?
1950 तक इनका पाकिस्तान में कत्लेआम होता रहा है और यह भागे भागे फिर रहे हैं
पहले बलोचिस्तान से फिर सिंध से फिर पश्चिमी पंजाब से
अंत में भाग के भारत में आकर बसे तो हिन्दू महासभा के कैंप में रहें (मिल्खा सिंह देखी होगी आपने)
फिर कुछ हरियाणा पंजाब के बड़े शहरो , अधिकतर दिल्ली, उत्तर प्रदेश के शहरों और बड़े शहर जैसे मुम्बई, पुणे, चेन्नई, अमदावाद, रांची ,पटना जाकर बसे
कुछ ने रेलवे स्टेशनों पर बूट पोलिश बेचीं कुछ ने तांगा चलाया कुछ ने मजदूरी करी कुछ ने बर्तन साफ़ किये
अपनी महनत के दम पर देश के हर विभाग में उच्चतम स्थान प्राप्त किये
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (कोहली - खत्री) थे
बॉलीवुड में ऋतिक रोशन (नागरथ) , गोविंदा(आहूजा) , अक्षय कुमार भाटिया, रवीना टण्डन, कपूर परिवार, चोपड़ा परिवार , साहनी परिवार, जोहर परिवार आदि नाम बहुत प्रचलित हैं
परन्तु यह एकमात्र जाति ऐसी है जिसने चहु ओर से शोषण सहे
विभाजनों पर विभाजन सहे
पलायन पर पलायन सहे
1984 के दंगो में मरने वाले 95% सिख (खत्री) थे
 जाट आंदोलन में इन्ही के दुकानों पर हमले हुए
परन्तु यह जाति आरक्षण नहीं मांगती
इसकी अपनी कोई सभा नहीं है
भारत में एक भी ऐसा MLA क्षेत्र नहीं है जहाँ इनकी पकड़ हो
इनका तुष्टिकरण कोई नहीं करता क्योंकि यह कमा के खाने वाले हैं वोटबैंक नहीं बनते
इस बात के लिए इस जाति को शत शत नमन
पंरतु जहाँ कमियां है वहां उनको पूरा करने का जिम्मा भी इनको उठाना चाहिए
नोट
यह पोस्ट जातिवादी नहीं है, केवल एक जामवन्त की हनुमान को पुकार है
उठो आर्यों के वंशजों, नींद से जागो, न जाने कितने दयानंद चाहिए इस जाति को जगाने के लिए ?

why should we indians celebrate Women's Day? | भारतीय महिला दिवस

महिला दिवस या women's day
आज का Women's day उन्ही लोगो की देन है
जिन सभ्यताओं में यह मान्यता थी
1) ईसाईयों के पूर्वज
ग्रीस के दार्शनिक प्लेटो (अरस्तु - Aristotle के शिष्य) यह मानते थे कि स्त्री में आत्मा नही होती, तो किसी भी कार्य में उनकी सलाह लेना व्यर्थ है।
2) ईसाईयों के जन्मस्थान italy के Rome की सभ्यता में सबसे अधिक महिला ग़ुलाम रखे गए हैं जो की उनकी अपनी सभ्यता और अन्य सभ्यताओं की भी हो सकती हैं।
3) 1950 तक ब्रिटेन की अदालत में महिला की गवाही को कोई मान्यता प्राप्त नही थी
4) 1978 तक 3 महिला के बराबर 1 पुरुष की गवाही को मान लिया गया
5) macedonia यूरोपियन सभ्यताओं में किसी भी महिला को घर से अकेले निकलने की अनुमति नही थी, उनके साथ कोई न कोई पुरुष होना जरुरी है, चाहे वह 3 साल का ही क्यों न हो, क्योंकि स्त्री में तो आत्मा होती नही, पुरुष में ही होती है।
6) यहूदी या इस्राइली सभ्यता में एक से अधिक स्त्री रखना मामूली बात है, यदि आपकी स्त्री को कोई अपहरण कर ले गया है तो यह उसे वापस लाने का कोई प्रयास नही किया करते।
ऐसा ही कुछ जर्मनी में भी देखने को मिलता है।
7) ईस्लामी सभ्यता में महिलाओं की आजतक क्या परिस्थिति है यह तो आप लोग भली भाँति समझते होंगे,
बुरका, बच्चे पैदा करने का दबाव, हलाला, तीन तलाक़, सौतन का दबाव इत्यादि।
यह सभ्यताएं हम भारतीयों को महिला दिवस मनाने और उसके तरीके बताने की नसीहत पेश करते हैं, जहां पवित्र वैदिक सभ्यता में वेद के समक्ष व् ईश्वर के ज्ञान के समक्ष सभी आत्माएं बराबर हैं
जहाँ यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता
इत्यादि सूत्र मनुस्मृति जैसे पावन ग्रन्थों में मिलते हैं
जहाँ गार्गी जैसी विदूषियां व् शकुंतला जैसी वीरांगनाएँ इतिहास में भरी पड़ी है, गुरुकुल की प्राचार्या महिलाये मिलती हैं।
जहाँ ऐसा हर दिन होता है जो महिला से शुरू होता हो और महिला के सो जाने पर खत्म होता हो
जहाँ महिला को देवी कह कर अर्थात निष्काम भाव से दान करने वाली, गृहणी, स्वामिनी कह कर सम्बोधित किया जाता हो।
उनकी सन्तानों को यह एक दिन चिपका रहे हैं
Women's day का?
साथ में feminism और गैरपुरुषवाद का जहर महिलाओ में घोलने की कोशिश हो रही है
वेद को अथवा मनु को पुरुषवादी घोषित करके
महिलाओं को धर्मविमुख यानि नास्तिक बनाया जा रहा है
जबकि वेद का हर सूत्र महिला पुरुष दोनों के लिए है
यदि कुछ महिला के लिए है तो विलक्षण रूप से लिखा गया है।
हमारे सभ्यता में हर दिन महिला का ही है।
अतः हर दिन स्त्री का सम्मान - पूजन होना चाहिए।
रक्षा, सुव्यवस्था, संसाधनों, सुसंस्कार इत्यादि गहनों से स्त्री का श्रृंगार होना चाहिए।
ओम् 
- 
Vichaarak